अब आपकी गाड़ियाँ चलेंगी 2 रुपया/किमी
भारत में बनेगा दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोजन प्लान्ट
इसे देखते हुए तीन बड़ी विदेशी एजेंसियों ने भी भारत को इस अभियान में मदद देने के लिए करीब 28 अरब डॉलर का प्रस्ताव दिया है। अब इनके नाम जान लीजिए। पहला एडीबी, दूसरा यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक यानी आईबी और तीसरा विश्व बैंक यानी वर्ल्ड बैंक है। ये तीनों विदेशी एजेंसियां अलग अलग तरीके से भारत के नेशनल हाइड्रोजन मिशन में तकरीबन 28 अरब डॉलर का योगदान देंगी। अब ग्रीन हाइड्रोजन क्या होता है, यह जान लीजिए। ग्रीन हाइड्रोजन एक कार्बन मुक्त यानी कार्बन फ्री ऊर्जा का श्रोत है। गाड़ियों के अलावा बिजली के इस्तेमाल से चलने वाले इक्यूपमेंट्स के लिए भी इसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में किया जा सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे स्वच्छ यानी क्लीन सोर्स ऑफ एनर्जी माना जाता है क्योंकि इसके इस्तेमाल से कोई कार्बन फुटप्रिंट नहीं छूटता।
और तो और, ग्रीन हाइड्रोजन के प्रोडक्शन में भी काफी कम कार्बन उत्सर्जन होता है। यानी कि यह जीरो पॉल्यूशन ईंधन है। हाइड्रोजन प्राकृतिक तौर पर भी बेहद आसानी से पाया जाता है। जैसे कि पानी में यह ऑक्सीजन के साथ उपलब्ध है। इसे इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के द्वारा पानी से अलग कर निकाला जा सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल बढ़ेगा तो क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में भी मदद मिलेगी।
अब सरकार का ग्रीन हाइड्रोजन मिशन क्या है? विस्तार से यह भी जान लीजिए। केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की बात की थी। इसका मकसद पेट्रोल, डीजल, कोयला जैसे परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करना है। साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी पर जोर देना भी इसका दूसरा उद्देश्य है। नवंबर 2 हज़ार 20 में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टर्स मीट में रिन्यूबल एनर्जी को लेकर अपनी बात रखी थी।
इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने एक फरवरी दो हज़ार 21 को अपने बजट भाषण में इसका रोडमैप सामने रखा था। वहीं दो हज़ार 21 के स्वतंत्रता दिवस पर ही पीएम मोदी ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। अब आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि विदेशी एजेंसियां भारत में अपना इनवेस्टमेंट क्यों करना चाहती हैं?
तो जनाब आपको बता दें कि केंद्र सरकार इस मिशन को सक्सेसफुल बनाने के लिए 19 हज़ार 700 ₹44 करोड़ की सब्सिडी देने की घोषणा की थी। ग्रीन हाइड्रोजन के लिए सबसे जरूरी तत्व है केबल सेक्टर में बनी ऊर्जा और भारत अभी दुनिया में सबसे सस्ती दर पर सौर ऊर्जा बना रहा है। यही वजह है कि विदेशी एजेंसियां भी यहां ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़े बिजनेस में दांव लगाने को तैयार हैं।
अंतराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक भी आने वाले सात साल में यानी साल दो हज़ार 30 तक ग्रीन हाइड्रोजन की मांग सालाना आधार पर 20 करोड़ टन होगी। आपको बता दें भारत सरकार की ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत वर्ष 2 हज़ार 30
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