भारत और अमेरिका ने मिलकर दिया चीन को बड़ा झटका

US ने चीन से छीना 'विकासशील देश' का दर्जा 


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ग्रीन और रिन्यूबल एनर्जी में भारत सरकार की कोशिशें अब रंग लाने लगी हैं। बड़े पैमाने पर जहां भारतीय कंपनियां सरकार की इस मुहिम में हिस्सा ले रही हैं तो वहीं अब दुनिया की दिग्गज कंपनियों को भी लग रहा है कि भारत ग्रीन एनर्जी में उनके लिए एक बड़ा कारोबारी ठिकाना साबित हो सकता है। इसके साथ ही इन दिग्गज ग्लोबल कंपनियों ने अभी तक दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब माने जा रहे चीन को टाटा बाय बाय बोलने का मन भी बना लिया है। इन कंपनियों को लग रहा है कि चीन को सही मायने में अगर कोई कारोबारी टक्कर दे सकता है तो वो है भारत। इसी कड़ी में अमेरिका की एक बड़ी सोलर कंपनी ने भी चीन को छोड़ भारत में पैर जमाने का इरादा कर लिया है। सोलर पैनल मैन्युफैक्चर इस कंपनी के भारत में आने से चीन का इस सेगमेंट में दबदबा खत्म हो सकता है। अमेरिका की फर्स्ट सोलर ने फैसला किया है कि वह चीन की बजाय भारत में अपना मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाएगी और अमेरिकी कंपनी भारत में अरबों डॉलर का इन्वेस्टमेंट भी करेगी।


 फर्स्ट सोलर भारत में सोलर पैनल बनाने में कोई भी कंपोनेंट चीन से इंपोर्ट नहीं करेगी। यानी चीन के इस कारोबार को लगने वाला है एक बड़ा जोर का झटका। सोलर एनर्जी में भारत बनने वाला है सुपर पावर। अमेरिका की एनर्जी सेक्रेटरी जेनिफर ग्रेम होम ने इस बात की जानकारी ईटी को दी है। उन्होंने यह भी कहा कि न सिर्फ फर्स्ट सोडा भारत में सोलर पैनल बनाएगी, बल्कि एलन मस्क की टेस्ला भी भारत में इन्वेस्टमेंट करने के लिए सरकार के साथ बातचीत कर रही है। गैन के मुताबिक, भारत एक बड़ा बाजार है और यहां बड़े पैमाने पर डिमांड है। 

दूसरी तरफ अमेरिका रिसर्च एंड डेवलपमेंट में एक अहम भूमिका निभाता है। अमेरिका के सोलर मॉड्यूल मैन्युफैक्चरर फास्ट सोलर भारत में बीते करीब एक दशक से मौजूद है और अब कंपनी चलने के पास श्रीपेरंबदूर में एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट भी लगा रही है। केंद्र सरकार की पीएलआई स्कीम के एक हज़ार 170 करोड़ के सपोर्ट के साथ फर्स्ट सोलर देश में 68.4 करोड़ डॉलर का इनवेस्टमेंट कर रही है। इसमें से 70 फीसदी इन्वेस्टमेंट कंपनी कर भी चुकी है। इस प्लांट के जरिए कंपनी 305 गीगावाट की थिन फिल्म मॉड्यूल बनाएगी। 

यह प्लांट प्रोडक्शन शुरू करने की ओर है। 18 जुलाई को दिल्ली में इंडिया यूएस स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप मीट हुई। इसके अलावा बीते महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका का दौरा किया, जहां टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने उनसे मुलाकात की। अमेरिकी कंपनियां भारत में एंट्री करने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी को तरजीह दे रही हैं और इस तरह से यह दोनों ही देशों के लिए बड़ा कारोबारी मौका साबित हो रहा है। ग्रांडहोम ने अनुमान जताया है कि ग्लोबल एनर्जी ट्रांजिशन मार्केट दो हज़ार 30 तक 23,00,000 करोड़ डॉलर पर पहुंच सकता है। यूएस इंडिया स्ट्रैटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप में ग्रीन होम ने कहा था कि दो हज़ार 35 तक अमेरिका को दो हज़ार गीगावाट क्लीन एनर्जी इलेक्ट्रिक ग्रिड से जोड़ने की जरूरत होगी। 

तभी वह बिजली के लिए 100 फीसदी ग्रीन सोर्स पर पहुंचने के गोल को पूरा कर पाएंगे। दूसरी ओर, भारत ने दो हज़ार 70 तक नेट जीरो उत्सर्जन का टारगेट रखा है। साथ ही दो हज़ार 30 तक भारत अपनी बिजली की जरूरतों का आधा हिस्सा रिन्यूएबल एनर्जी सोर्सेज से पूरा करना चाहता है। कुलमिलाकर बड़ी बात यह है कि भारत तेजी से चीन की  दुनिया की फैक्ट्री की हैसियत को चुनौती दे रहा है और इसमें दुनिया भर की कंपनियां भारत पर भरोसा दिखा रही हैं। फर्स्ट सोलर और टेस्ला का भारत में अरबों डॉलर लगाने का प्लान इसी पर मुहर लगा रहा है।

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